बहुत दिनों से मन मे यह इच्छा थी की अपने अनुभवों को शब्दों की माला पहनाऊँ परंतु मन हमेशा बचने के बहाने ढूँढ लेता था। कुछ दिनों पहले मैं एक आदरणीय व्यक्ति को अपने कुछ संस्मरण सुना रहा था। मेरी बातें सुन कर उन्हें उत्सुकता और आश्चर्य के जिस सागर में डुबकियां लगाते देखा यह वर्णनातीत है। उनकी ही प्रेरणा से लिखने का साहस कर रहा हूँ। यहाँ कितने लोग इसे पढेंगे और कितनों को इसे पढ़ कर आनंद आएगा, इसकी गणना अगर मैं करने लगूं तो शायद कभी कुछ ना लिख पाऊँगा। वैसे भी मेरी भावनाये, अनुभव या शब्द इतने परिष्कृत नही की मैं उन्हें समीक्षकों की भीड़ में अकेला छोड़ दूं। अगर आप सचमुच इसे पढ़ रहे हैं तो मैं आपका आभारी हूँ। और यदि आपने कष्ट करके मेरी गलतियों की ओर इशारा किया, कुछ टिप्पणियां लिखीं, मेरा मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन किया, तो समझ लीजिये की मैं आपका ऋणी हो गया।
भूमिका लंबी हो रही है अतः सीधे काम की बात पर आता हूँ। इस कहानी को कहानी की जगह आत्मकथा कहूं तो शायद यह ज्यादा सही होगा। यद्यपि मैं इतना बड़ा आदमी नही हूँ जिसकी आत्म कथा मे किसी को दिलचस्पी हो पर यदि आपको कहानी मान कर भी इसे पढने मे आनन्द आ जाये, तो मैं खुद को धन्य समझूंगा।
यह कहानी है एक साधारण से इन्सान की, जो मेहनत या भाग्य (दोनो मे से जो आपका दिल करे, चुन लें) की बदौलत जमीन से आसमान तक आ पहूँचा। यह अनवरत चलने वाले संघर्ष की गाथा है। यह कहानी है परिस्थितियो एवं सपनों के बीच झूलते एक ऐसे बालक की जिसने हमेशा अपने सपनों को खुद से भी आगे रखा। शायद कुछ लोग इस कहानी से बोर हो जाएँ। परंतु अगर एक प्राणी भी इससे प्रेरित हो सका तो मैं अपने प्रयास को सफल कहने लग जाऊँगा।
वक्त की कमी के कारण लिखने की निरंतरता कितनी कायम रह पायेगी यह नही जानता। फिर भी कोशिश करूंगा कि जो भी इक्के दुक्के पाठक हो उन्हें इंतेजार ना करना पड़े।
कहानी के नाम भले ही काल्पनिक हों, परंतु उसके पात्र वास्तविक हैं- इसका विश्वास दिलाता हूँ। मेरे अनुभवों मे जिनका भी हाथ है, उन सबका आभार प्रकट करता हूँ। और इस प्रारम्भ के अंत मे माँ सरस्वती से कृपा की याचना करता हूँ।
4 टिप्पणियां:
प्रेरणा तो स्रोत है जीवन के उत्थान का और यह प्रस्तुति भी बहुत समान है उसके मगर थोड़ा और व्याख्या करे तो कुछ और सीखा जाए…
स्वागत है.
Achhi shuruaat hai Vikash!
Tumhari rachnao ko padhne me pehle bhi maja aata tha ,abhi bhi aata hai , & i m sure aage bhi ayyega...
Good Luck!
विकास जी , आपकी भूमिका पढ़ने से पहले मैं आपके अलग-अलग चिट्ठों पर जाकर आपकी लेखनी और आवाज़ का आनन्द ले चुकी हूँ। आपसे एक निवेदन है कि प्रकृति की सुन्दरता और पक्षी की चहचहाट पर गुस्सा न करके एक बार मुस्करा भी दीजिए।
शूभकामनाएँ
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