सोमवार, जून 25

तब मैं मनुष्य से ज्यादा पशु के करीब था

बचपन के बारे मे जब भी सोचता हूँ तो धुंधली धुंधली सी कई परछाईयाँ सामने आ खडी होती हैं। मेरे घर की वो काली चितकबरी गाय, मेरे मनोरंजन के लिए पाले गए धवल खरगोश के जोडे, और खपरैल पर टिन के छोटे डब्बे मे पाले हुए कबूतर- सबका मेरे बचपन मे कितना महत्वपूर्ण स्थान रहा है, ये मैं कभी व्यक्त ना कर पाऊँगा। आज मेरे पास कोई भी पालतू जीव नहीं है, पर निरीह जानवरों पर मेरा प्रेम कभी कम ना हुआ।

मेरे खानदान मे पालतू जानवरों का इतिहास काफी गरिमामय हो, ऐसा नही है। एक किसान के परिवार मे गाय-भैंस तो होते ही हैं। यद्यपि मेरे दादाजी ने गाँव से अलग एक कस्बे मे अपना घर बनाया था (आजकल आप उस कस्बे को शहर भी कह सकते हैं) परंतु किसान तो ठहरा किसान ही ना। तो मेरे घर मे एक बछडे और गाय की गोशाला थी। मेरी पुरानी स्मृतियों मे से एक स्मृति यह भी है, जब मैंने बछडे को गाय के उदर से निकलते देखा। इस पर भी कोई विश्वास नही करता, क्यूंकि तब मैं बहुत छोटा था। गाय का पौष्टिक दूध पीने को मिले तो गाय तो रास आएगी ही। मैं घंटो उस गाय के पास बैठा रहता और जब माँ जबरदस्ती गंदे होने के भय से मुझे वहाँ से हटा देती तो अपनी काल्पनिक भाषा मे उससे बातें करता। शायद मेरे पशु प्रेम को देखकर ही, दादाजी ने एक दिन अनायास ही दो खरगोश ला कर सामने खडे कर दिए।

ये खरगोश गायों से अधिक सुंदर थे। मैं इन्हें पकड़ सकता था। इनका रंग भी लुभावना था। आँखें भी प्यारी थी। सींघों का डर भी नही था और माँ कभी भी इनके पास से मुझे नहीं हटाती थी। घर के एक हिस्से मे घास ही घास थे, तो दिन भर मैं उन खरगोशों के साथ खरगोश बना रहता। हर आते जाते के लिए मेरा खरगोश प्रेम एक उदाहरण जैसा था। शायद ये खरगोशों की संगति का ही असर था कि मैं बचपन मे नेक और आज्ञाकारी था। आज भी मेरी माँ गर्व से कहती है कि उसके बेटे ने ना तो बचपन मे उटपटांग जिद्द की और ना ही रो रो कर आसमान सर पर उठाया।

और हमेशा खुश रहने वाला बालक अचानक से एक दिन रोते रोते आसमान उठा दे तो? हुआ यह कि एक दिन सुबह सुबह मैं हमेशा की तरह अपने खरगोशों की तलाश मे मग्न था। और घंटे भर के भी बाद जब वे ना मिले तो मेरे आंखों मे बरबस ही आंसू आ गए। हर जगह मैंने अपना 'खल्गोछ' ढूँढ लिया पर वो नही मिले। लोग समझाने लगे कि वो दुसरा खरगोश ले आएंगे लेकिन 'नही! मुझे तो अपना वाला खरगोश ही चाहिऐ'। हर कोई परेशान! मुझे चुप कराने के लिए तरह तरह के प्रलोभन दिए जाने लगे। पर निष्कपट बालक रिश्वत ले कर अपने दोस्त को कैसे भूले? किसी ने डरते डरते बताया कि वो खरगोश मर गया। पर बालपन में मृत्यु जैसी अतार्किक शब्द का ज्ञान भी कहाँ होता है?

'मर गया...! मतलब?' निरीह बालक ने आंसू पोछ्ते हुए प्रश्नवाचक दृष्टि दी। (बोलना तो जानता नही था, शब्द ज्ञान सीमित जो था)

'मतलब भगवान् जी के पास चला गया।' प्रत्युत्तर मे एक दार्शनिक जवाब मिला।

'भगवान् जी तो सबको खुश रखते हैं ना? और वो तो हमेशा सही काम करते हैं ना? फिर मेरा खरगोश क्यों चुराया? सब कहते कि मैं अच्छा बच्चा हूँ। फिर भी...ऊँऊऊँ' (रोना फिर प्रारम्भ! तुम लोग अनजाने शब्दों का प्रयोग कर के मुझे बहलाना चाहते हो।)

'अरे एक दिन सबको भगवान् जी अपने पास बुला लेते हैं।' जवाब मिला।

'अपने पास बुला लेते हैं? कहाँ? कहाँ घर है उनका? अभी जाओ...और जाके मेरा खरगोश ले के आओ।' - बालक ने क्षण भर को रोना रोक कर कहा। मन मे आशा की एक किरण जागी। शायद भगवान् जी के घर पे अभी भी मेरा खरगोश मिल जाये।

'अरे उनके घर कोई नही जा सकता! वो आसमान मे रहते हैं।'

'नही! ये लोग जवाब दे रहे हैं या मजाक कर रहे हैं। मैं कुछ भी पूछता हूँ तो ऐसा जवाब देते हैं जो १०० नए सवाल उठाता है। हद्द है! ऐसा कैसा घर जहाँ कोई जा ही नही सके? जाने का मन ही नहीं है इन लोगों का। और कहाँ रहते हैं ये भी कोई बता देता तो मैं खुद ही चल जाता किसी तरह पूछ पूछ के। लेकिन ये तो झूठ बोलते हैं। आसमान मे कोई कैसे रह सकता है? गिर नही जाएगा क्या? जान बुझ के उल्टे सीधे उत्तर दे रहे हैं। और भगवान् जी भी गंदे हैं। चुराने के लिए मेरा ही खरगोश मिला था। नही नही....! भगवान् जी को गन्दा कहने से पाप लगता है। ये लोग गंदे हैं। झूठमूठ भगवान जी को बदनाम कर रहे हैं। इन्ही लोगों ने किसी को दे दिया होगा। आने दो दादाजी को। सबकी शिक़ायत करूंगा।' बालमन ना जाने क्या क्या सोच गया।

दिन भर रोने के बाद जब रात को दादाजी को सब कुछ सुनाया तो उन्होने बड़ी गम्भीरता से मुझे समझाने कि चेष्टा की कि हर कोई अपना निश्चित समय पुरा करके वापस चला जाता है। मैं उनकी बात समझ गया- इसका तो भरोसा नही होता, पर रोते रोते थक जान के कारण सो जरूर गया। सुबह उठने पर मैं कुछ भी भूल तो नही पाया परंतु इतनी बात समझ मे आ गयी कि अब मेरे खरगोश मुझे कभी नही मिलेंगे।

उस दिन के बाद मैं हमेशा उदास रहने लगा। लोगों को बहुत चिंता हुई। फिर एक दिन मेरे पापा की बुआ कहीँ से दो कबूतर ले आयी। उस दिन बहुत दिनों बाद मैं खुश हुआ। हमारे घर के बरामदे मे खपरैल थी। वहाँ टिन का एक डब्बा रखा गया और उसमे दो नन्हे कबूतर। उन्हें उड़ना नही आता था। मैं रोज उन्हें देखता रहता कि वो शायद आज उड़ना सीख जायेंगे। और एक दिन मैंने उन्हें उड़ते देखा। सबसे पहले उन्हें उड़ते हुए मैंने देखा, इस बात की ख़ुशी असीम थी। बस थोड़ी दूर ही उड़ पाते थे वो। उन्हें उड़ना सीखते हुए दो दिन भी नही हुए थे कि एक सुबह मैंने अपने घर के कटहल के पेड के नीचे उन्हें लेटे देखा। चारो तरफ ख़ून बिखरा था। और एक बिल्ली एक कबूतर को अपने मुँह मे दबाये थी। थोड़ी देर मैं सन्न होकर देखता रहा। घरवाले लोगों ने जब ये देखा तो फौरन मुझे वहाँ से हटा लिया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। घरवाले डरते रहे कि इस बार मेरा रोना नही रूक सकेगा। पर मैं बिल्कुल नही रोया। मैं भी 'मृत्यु' का अर्थ जान गया था।

7 टिप्‍पणियां:

Amrita.. ने कहा…

"Mar Gaya.......! Matlab"

kitna bada prashn hai ye!
is prashna ka uttar kitna kathin...ek baal man to kya ek yuva ...YA gyani bhi iska sahi uttar nahi de sakte ....utaar scientific, darshanik ya kisi bhi roop me samaksh aaye......aisa koi uttar to poornataya sweekar kiya ja nake...shayad aaj bhi kisi k paas nahi hai!
acchha likha hai!
Good...
Keep it up1

Yunus Khan ने कहा…

वाह विकास बहुत अच्‍छा संस्‍मरण है । बड़ी संवेदनशीलता के साथ लिखा है । शायद मैं तुम्‍हारे इस ब्‍लॉग पर पहली दफा आया । क्‍या ले आउट है । शानदार । क्‍या तुमने कोई तयशुदा टेम्‍पलेट इस्‍तेमाल किया है या फिर ये कोई और ही क्रांति है तुम्‍हारी । जो भी है मन प्रसन्‍न हुआ इस जमीन से इस आसमान तक आकर ।

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत अच्छा लगा पढ़कर । सच है जो बात जानवरों में होती है वह मनुष्य में नहीं हो सकती । उनसे हमारा व हमसे उनका प्रेम विशुद्ध होता है, ना कोई दिखावा, ना कोई झूठ ।
घुघूती बासूती

Divine India ने कहा…

बहुत अच्छा संस्मरण लिखा है बिल्कुल प्रकृति… जिस कोमलता का अनुभव व्यक्ति चुप जानवर के साथ करता है वह प्रतिकार करने बाले के साथ नहीं…। ये तो मात्र तार्किक है…लेकिन तुमने जो कहा वह छू गया हृदय को।

Satyendra Prasad Srivastava ने कहा…

अच्छा है, दिल को छूने वाला

Neeraj K. Rajput ने कहा…

बहुत अच्छा संस्मरण है ! अच्छा लगा पढ़कर ।

Tumty ने कहा…

great piece of writing...straight from the heart...